
Political agitation has intensified in Maharashtra regarding the upcoming Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) elections.
महायुति में सीट बंटवारे की चुनौती: ‘मिशन 150’ बनाम शिवसेना का दावा

यह चुनाव न केवल मुंबई शहर के भविष्य का निर्धारण करेगा, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा को भी काफी हद तक प्रभावित करेगा। इस बार मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले ‘महायुति’ गठबंधन और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के बीच होने की संभावना है। महायुति के भीतर सीट-बंटवारे को लेकर जो तनाव उभरा है और शिवसेना (यूबीटी) की अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति ने इस चुनाव को और भी दिलचस्प बना दिया है।
महायुति में सीट बंटवारे की चुनौती: ‘मिशन 150’ बनाम शिवसेना का दावा
भाजपा ने आगामी बीएमसी चुनाव के लिए एक महत्वाकांक्षी ‘मिशन 150’ का लक्ष्य रखा है, जिसका अर्थ है कुल 227 सीटों में से 150 सीटें जीतना। यह लक्ष्य 2017 के चुनाव में भाजपा द्वारा जीती गई 82 सीटों से काफी अधिक है, और यह शहर की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने की पार्टी की प्रबल इच्छा को दर्शाता है। भाजपा पूर्ण बहुमत (114 सीटें) हासिल करने की कोशिश कर रही है ताकि वह किसी भी गठबंधन सहयोगी पर निर्भर हुए बिना मुंबई महानगरपालिका पर शासन कर सके।
हालांकि, भाजपा के इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के कारण उसके गठबंधन सहयोगी, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ तनाव पैदा हो गया है। शिंदे गुट ने 90 से 100 सीटों का दावा किया है, यह देखते हुए कि उसने शिवसेना (यूबीटी) के 43 पूर्व पार्षदों को अपने पाले में कर लिया है, जिससे उसकी ताकत बढ़ी है। इन दोनों दलों की सीटों की मांग का योग कुल सीटों (227) से कहीं अधिक है, जो महायुति गठबंधन के भीतर गंभीर मतभेदों का संकेत देता है।
महायुति के भीतर सीट-बंटवारे की चुनौती भाजपा और शिंदे गुट दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों ही बीएमसी में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। शिंदे गुट ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि यदि भाजपा मुंबई में अधिक सीटें चाहती है, तो उसे ठाणे और कल्याण-डोंबिवली जैसे अन्य महत्वपूर्ण शहरी क्षेत्रों में शिवसेना का समर्थन करना होगा, जहां शिंदे गुट का पारंपरिक रूप से मजबूत आधार रहा है। यह एक ‘अदला-बदली’ की रणनीति है, जहां एक क्षेत्र में रियायतों के बदले दूसरे क्षेत्र में समर्थन मांगा जा रहा है। इस जटिल सीट-बंटवारे के लिए गहन बातचीत और समझौतों की आवश्यकता होगी ताकि गठबंधन न टूटे और वे एकजुट होकर चुनाव लड़ सकें। महायुति की एकता शिवसेना (यूबीटी) को प्रभावी ढंग से चुनौती देने की कुंजी होगी।
शिवसेना (यूबीटी) की रणनीति: अकेले चलने का रास्ता

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) ने बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। यह निर्णय पिछली गठबंधन रणनीतियों, विशेष रूप से कांग्रेस के साथ, के अनुभव से प्रेरित है, जिससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे। पार्टी का मानना है कि अकेले चुनाव लड़ने से उन्हें अपनी पारंपरिक ‘मराठी मानुष’ और हिंदुत्व पहचान पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलेगा, जो ऐतिहासिक रूप से शिवसेना का गढ़ रहा है।
शिवसेना (यूबीटी) सभी 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की योजना बना रही है, जो अपने दम पर सत्ता हासिल करने के उसके दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास को दर्शाता है। हालांकि, यह रणनीति महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन में भी दरार पैदा कर सकती है, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार गुट) शामिल हैं। यदि शिवसेना (यूबीटी) अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करती है, तो यह इन दलों के बीच भविष्य के सहयोग को प्रभावित कर सकता है और गठबंधन की समग्र एकता पर सवाल उठा सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि एमवीए के अन्य घटक इस निर्णय को स्वीकार करते हैं या वे भी अपना अलग रास्ता चुनते हैं।
चुनाव के लिए संभावित समय-सीमा
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को अगले चार महीनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया है। इस आदेश के अनुसार, बृहन्मुंबई महानगरपालिका के चुनाव अक्टूबर या नवंबर 2025 में होने की संभावना है। यह समय-सीमा राजनीतिक दलों को अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने, उम्मीदवारों का चयन करने और गहन अभियान चलाने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करती है। मुंबई जैसे बड़े महानगर में, चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष और सुचारु चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
मुंबई की राजनीति में संभावित बदलाव
आगामी बीएमसी चुनाव मुंबई की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं:
- भाजपा का बढ़ता प्रभुत्व: यदि भाजपा ‘मिशन 150’ के करीब पहुंचने में सफल होती है, तो यह मुंबई में शिवसेना के पारंपरिक गढ़ को और कमजोर करेगा और शहर पर भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित करेगा। यह महाराष्ट्र की समग्र राजनीति में भी भाजपा की स्थिति को और मजबूत करेगा।
- शिंदे गुट की अग्निपरीक्षा: यह चुनाव एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के लिए एक महत्वपूर्ण अग्निपरीक्षा होगी। यह साबित करेगा कि उद्धव ठाकरे से अलग होने के बाद शिंदे गुट ने मतदाताओं के बीच वास्तविक समर्थन हासिल किया है या वे अभी भी भाजपा पर निर्भर हैं। यदि वे 90-100 सीटों के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो उनकी राजनीतिक साख पर सवाल उठेंगे।
- उद्धव ठाकरे का भविष्य: यह चुनाव उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। यदि वह अकेले लड़कर मजबूत प्रदर्शन करने में सफल रहते हैं, तो इससे उनकी पार्टी पुनर्जीवित होगी और महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्थापित होंगे। हालांकि, यदि वह खराब प्रदर्शन करते हैं, तो उनकी पार्टी के भविष्य पर गंभीर सवाल उठेंगे।
गठबंधन की राजनीति का भविष्य: महायुति के भीतर सीट-बंटवारे की खींचतान और एमवीए में शिवसेना (यूबीटी) का अकेले लड़ने का निर्णय महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति के भविष्य पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। परिणाम संभवतः राज्य में गठबंधनों के आकार और दीर्घायु को निर्धारित करेंगे।